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किसी भी लोकतंत्र में चुनाव सबसे महत्वपूर्ण पर्व होता है, जहां लोग अपने मताधिकार का प्रयोग करके सरकार चुनते हैं। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में 18वीं लोकसभा के गठन के लिए चुनाव प्रक्रिया जारी है। ऐसे में, आप यह जानकर हैरान रह जाएंगे कि लोकसभा का यह चुनाव दुनिया का सबसे महंगा ‘चुनाव’ साबित होने जा रहा है। हर पांच साल में होने वाले लोकसभा चुनाव में खर्च पहले की तुलना में दो गुना बढ़ जा रहा है। लोकसभा 2024 के चुनाव में 1 लाख 20 हजार करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है, जो कि 2019 के चुनाव से दो गुना अधिक है।
सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज की एक रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया है कि 2024 के भारत के चुनावों का खर्च 2019 में लोकसभा चुनावों की तुलना में दोगुना से अधिक होगा। जबकि 2019 के चुनाव में कुल खर्च लगभग 55 से 60 हजार करोड़ रुपये था। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लगातार चुनाव का खर्च बढ़ रहा है। अमेरिकी चुनाव पर नजर रखने वाली एक वेबसाइट की रिपोर्ट का हवाला देते हुए, सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज के अध्यक्ष एन भास्कर राव ने कहा कि यह 2020 के अमेरिकी चुनावों पर हुए खर्च के लगभग बराबर है, जो 14.4 बिलियन डॉलर यानी 1 लाख 20 करोड़ रुपये था। उन्होंने कहा कि दूसरे शब्दों में कहें तो भारत में 2024 में दुनिया का सबसे बड़ा चुनाव अब तक का सबसे महंगा चुनाव साबित होगा।
हालांकि, रिपोर्ट के मुताबिक चुनाव में होने वाले वास्तविक खर्च और आधिकारिक तौर पर दिखाए गए खर्चे में काफी अंतर है। रिपोर्ट के मुताबिक 2019 के लोकसभा चुनाव में देश के 32 राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों द्वारा आधिकारिक तौर पर सिर्फ 2,994 करोड़ रुपये का खर्च दिखाया। इनमें दिखाया गया कि राजनीतिक दलों ने 529 करोड़ रुपये उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने के लिए दिए थे। रिपोर्ट के मुताबिक, चुनाव में राजनीतिक दलों द्वारा निर्वाचन आयोग में पेश खर्च का ब्योरा और वास्तविक खर्च के साथ-साथ उम्मीदवारों द्वारा अपने स्तर पर किए जा रहे खर्चे में काफी अंतर है। • रिपोर्ट के मुताबिक जहां इस चुनाव में एक लाख 20 हजार करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है, वहीं, 2019 में लगभग 60 हजार करोड़, 2014 में 30 हजार करोड़ और 2009 में 20 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए थे। इनसे सबसे अधिक राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों द्वारा प्रचार अभियान, रैली, यात्रा खर्च के साथ-साथ सीधे तौर पर गोपनीय रूप से मतदाताओं को सीधे नकदी भी वितरण शामिल है।
1998 से 2019 तक छह गुना बढ़ा चुनाव खर्च
सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज (सीएमएस) की रिपोर्ट के मुताबिक 1998 और 2019 के बीच यानी 20 सालों में चुनाव खर्चे में छह गुना बढ़ोतरी हुई है। इसमें कहा गया था कि 1998 में जहां चुनाव पर कुल खर्च 9,000 करोड़ रुपये हुआ था, वहीं, 2019 में बढ़कर लगभग 55 से 60 हजार करोड़ रुपये हो गया। रिपोर्ट के मुताबिक 2019 के आम चुनावों के दौरान औसतन प्रति वोट 700 रुपये या प्रति लोकसभा क्षेत्र लगभग 100 करोड़ रुपये खर्च किए गए।
चुनाव खर्च के लिए यहां से मिलता है पैसा
रिपोर्ट के मुताबिक आमतौर पर, चुनाव अभियान के लिए धन अलग- अलग स्रोतों से अलग-अलग तरीकों से उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों के पास आता है। राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को चुनाव खर्च के लिए मुख्य रूप से रियल एस्टेट, खनन, कॉर्पोरेट / उद्योग/ व्यापार, ठेकेदार (विशेषकर सिविल यानी बुनियादी ढांचा, सरकारी परियोजनाओं पर काम करने वाले), चिट फंड कंपनियां, ट्रांसपोर्टर, परिवहन ठेकेदार, शिक्षा उद्यमकर्ता, एनआरआई, फिल्म, दूरसंचार जैसे प्रमुख स्रोत हैं।
इस साल डिजिटल प्रचार बहुत ज्यादा हो रहा है। मिडिया अभियानों पर बहुत अधिक खर्च किया जाता है।राजनीतिक दल कॉर्पोरेट ब्रांड की तरह काम कर रहे हैं और पेशेवर एजेंसियों की सेवाएं ले रहे हैं। — अमित वाधवा, विज्ञापन एजेंसी डेंटसू क्रिएटिव
कहां जाता है पैसा
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान, कुल 55,000-60,000 करोड़ रुपये खर्च हुए। इनमें से लगभग 20-25 फीसदी या 12,000-15,000 करोड़ रुपये सीधे मतदाताओं के पास गए।
कुल खर्च का सबसे बड़ा हिस्सा राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों द्वारा प्रचार अभियान, प्रचार सामग्री, रैली, यात्रा आदि पर लगभग 30-35 फीसदी या 20,000-25,000 करोड़ रुपये खर्च हुआ था।
■ लॉजिस्टिक्स पर 8 से 10 फीसदी यानी लगभग 5,000-6,000 करोड़ खर्च हुए।■ ईसीआई प्रकटीकरण के तहत आने वाला औपचारिक व्यय पर 15 से 20 फीसदी यानी 10,000-12,000 करोड़ खर्च हुआ।
अन्य विविध मदों में 10 फीसदी यानी 3000 से 6000 करोड़ रुपये खर्च हुए।
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत की चुनावी प्रक्रिया में खर्च भी एक चुनौती पेश कर रहा है। सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज की हालिया रिपोर्ट के अनुसार इस बार का चुनावी महापर्व एक लाख 20 हजार करोड़ रुपये के खर्च के साथ दुनिया का सबसे महंगा चुनाव होने की ओर अग्रसर है। साल-दर-साल चुनावी खर्च से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर एक नजर
चुनाव आयोग ने कब-कब बढ़ाई उम्मीदवारों के खर्च की सीमा
■ 1951-52: देश के पहले आम चुनाव में, लोकसभा उम्मीदवारों को अधिकतम 25,000 रुपये खर्च करने की अनुमति थी। हालांकि कुछ पूर्वोत्तर राज्यों में यह सीमा महज 10,000 रुपये थी।
■ 1971: अधिकांश राज्यों में लोकसभा चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के लिए खर्च सीमा बढ़ाकर 35,000 रुपये कर दी गई।
■1980: भारतीय निर्वाचन आयोग ने इस चुनाव में खर्च की सीमा लगभग तीन गुना बढ़ा दी और 1 लाख रुपये तक उम्मीदवारों को खर्च करने की अनुमति दी गई।
■ 1984: महज चार साल बाद हुएलोकसभा चुनाव में निर्वाचन आयोग द्वारा कुछ राज्यों में खर्च सीमा को बढ़ाकर 1.5 लाख रुपये और छोटे राज्यों में 1.3 लाख रुपये कर दिया गया। एक से दो सीटों वाले राज्यों में अधिकतम सीमा 1 लाख रुपये ही रहने दी गई।
■ 1996: उदारीकरण के बाद के चुनाव में अधिकांश राज्यों के लिए सीमा को तीन गुना बढ़ाकर 4.5 लाख रुपये कर दिया गया। इसमें केंद्र शासित प्रदेश की स्थिति और सीटों की संख्या के आधार पर बदलाव किया गया।
■ 1998: में चुनाव खर्च सीमा को बढ़ाकर 15 लाख रुपये किया गया।
■ 2004: लोकसभा चुनाव में उम्मीदवारों के लिए खर्च की सीमा को बढ़ाकर 25 लाख रुपये कर दिया गया।
■ 2014: खर्च सीमा को दोगुना से ज्यादा बढ़ाते हुए इसे 70 लाख कर दिया।
■ 2022: पिछले लोकसभा चुनावों के बाद, एक बार फिर से उम्मीदवारों के चुनाव खर्च की सीमा बढ़ाई गई। फिलहाल लोकसभा चुनाव के लिए 95 लाख और विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों को 40 लाख रुपये तक खर्च करने की अनुमति है।
पहले चुनाव की तुलना में 2024 में 500 गुना अधिक खर्च का अनुमान
आजादी के जादी के बाद देश में 1952 में हुए पहले आम चुनाव की तुलना में, 2024 में 500 गुना अधिक खर्च होने का अनुमान है। जबकि मतदाताओं की संख्या में पांच गुना से अधिक की बढ़ोतरी हुई है।वर्ष 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में जहां सिर्फ 10.50 करोड़ रुपये खर्च हुए थे, वहीं 2024 में 5000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च होने का अनुमान है।
प्रति मतदाता 6 पैसे से बढ़कर 52 रुपये तक पहुंच गया
देश की आजादी के बाद 1951-52 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में भारतीय निर्वाचन आयोग का प्रति मतदाता महज 6 पैसे खर्च हुआ था। लेकिन 2024 के आम चुनाव में सरकारी खजाने से प्रति मतदाता 52 रुपये खर्च होने का अनुमान है।